ज्ञान - अज्ञान

नमस्कार,
                       बोध-गंगा में आपका स्वागत है।

ज्ञान और अज्ञान को जानने की यात्रा में हम यह भलीभांति जानते है कि ये दोनों परस्पर विरोधी शब्द है।जहाँ अज्ञान होता है, वहाँ ज्ञान नहीं हो सकता है और जहाँ अज्ञान का अभाव हो ,वहीं ज्ञान है।

अज्ञान मान्यताओँ, अवधारणाओं, कल्पनाओं पर आधारित होता है।जिसमें अतार्किक तथ्य और स्वयं के अनुभवों का अभाव होता है।

ऎसा कोई विचार जिसमें भ्रांति, कल्पना,मिथ्या,कुतर्क अथवा भ्रम का समावेश हो,जिसे अपनी बुद्धि या तर्क से परखा न गया हों और यदि उस विचार को मान लिया जाएं  कि सत्य है,तो वह संस्कार के रूप में चित्त में संचित होती है,वही अज्ञान है।

जबकि ज्ञान स्वयम के अनुभवों का व्यवस्थिकरण या संयोजन है।जिसमें विभिन्न अनुभवों का आपस में संयोजन या व्यवस्थिकरण किया जाता है,जो ज्ञान है।यह एक चित्तवृत्ति है।यह भी चित्त में ही संचय होता है।इसका कोई आदि या अंत नही है।ज्ञान में तार्किक,स्वानुभूत तथ्य होते है

जीवन क्या है? विभिन्न अनुभवों की श्रृंखला है।सभी अनुभव किसी न किसी ज्ञान को प्रदर्शित करते है। जीव की उत्तरजीविता के लिए ज्ञान आवश्यक है।उत्तरजीविता अर्थात जीवन निर्वाह ।जब तक एक अनुभव दूसरे अनुभव से संयोजित न हो तब तक वो अनुभव अपने आप मे कोई अर्थ प्रकट  करते है और जीव का तो स्वभाव ही अनुभवों का व्यवस्थिकरण करना है ताकि कोई अनुभव की सार्थकता प्रकट हो सकें ।जीवों का मूल स्वभाव ही अनुभवों का व्यवस्थापन है

जब कोई अनुभव चित्त में संस्कार उत्पन्न करता है,वही संस्कार चित्त में वृत्ति के रूप में प्रकट होती है।वही ज्ञान है।ज्ञान का कारण अनुभव तथा स्मृति है।ज्ञान कई प्रकार के होते है जैसे- चित्तवृत्तियों का ज्ञान, आत्मज्ञान,ब्रम्हज्ञान इत्यादि।

जीव के लिए ज्ञान आवश्यक है।मनुष्य में बुद्धि का स्तर अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक विकसित है,जो उसकी जीवन शैली से परिलक्षित होती है।


आदि मानव से आधुनिक मानव तक की यात्रा उसकी बुद्धि- कौशल और असीमित ज्ञान की पहचान है।मनुष्य  का ज्ञान सभी क्षेत्रों ( भौतिक, सामाजिक,आध्यात्मिक) में असीमित है।बुद्धि के तल पर ज्ञान का भंडार असीमित है।

   अज्ञान अंधकार है तो ज्ञान प्रकाश है।जो अज्ञान में है वो भी नहीं जानते है कि हम अज्ञान में है जब तक उनके चित्त में ज्ञान का अनुभव नहीं हो जाये।

आध्यत्मिक जगत में जब हम सत्य की खोज पर निकलते है इस निष्कर्ष पर टिक जाते है कि स्वयं के तत्व को जानना ही सच्चा ज्ञान है,शेष  सभी संसारिकता(माया) का ज्ञान है।

आत्मविस्मृति,अविवेक अज्ञान है।ज्ञान-अज्ञान दोनों ही माया है,मिथ्या है।जो तत्व है उसे बुद्धि से नहीं जाना जा सकता है।

जब बुद्धि समर्पित होती है तभी तत्व प्रकट होता है,जो हुआ जा सकता है परंतु जाना नहीं जा सकता।इसलिए ज्ञान- अज्ञान दोनों माया (मिथ्या) है,जिसे एक कांटे से दूसरे कांटे को निकालने की तरह है और अंत मे दोनों का कोई उपयोग नहीं होने के कारण फेंक दिया जाता हैं । जो तत्व (सत्य) है उसे बुद्धि से जाना नहीं जा सकता है,जो भी बुद्धि से जाना जा सकता है वो असत्य या अज्ञान है।

            
                 * * * * *  श्री गुरुवे: नम:  * * * * *

Popular posts from this blog

सत्य

मुक्ति की आकांक्षा