सत्य

 सभी धर्मों में सत्य को प्रतिष्ठित किया गया है।सत्य को सर्वोपरि रखा गया है।सबने एक ओंकार ,सत्यनाम ,साक्षी आदि नामों की ओर ही इंगित किया है परंतु फिर भी लोग सत्य से बहुत अनभिज्ञ होते है। 

सामान्य जीवन में भी सत्य के प्रति उत्सुकता होती है।आखिर सत्य क्या है यह जानने में चेष्टा लगी होती है।अपने माता-पिता,शिक्षकों ,पुस्तकों से जो मिलती है ,वह जानकारी या सूचना मात्र होती है।

अपने मत में हमनें अपने माता-पिता,शिक्षकों से जो प्राप्त होता है उस पर अपना पूरा विश्वास होता है कि वह सत्य ही होगा ,किंतु यह विचारणीय है कि कौन से तथ्य को सत्य मान लेवें और किसे असत्य । 

सत्य-असत्य को तय करना कठिन होगा जब तक सत्य को परखने का मानदंड अपने पास न हों।सत्य दो प्रकार का हो सकता है एक व्यक्तिनिष्ठ और दूसरा सार्वभौमिक।व्यक्तिनिष्ठ सत्य स्वयम के अनुभवों पर आधारित होते है, दूसरा सार्वभौमिक सत्य जो सबके अनुभवों का सत्य होता है।
सत्य के मानदंड में स्वानुभूति, तार्किकता,पुनरावृति, सर्वव्यापकता ,स्वप्रमाणिकता का गुण होना चाहिए ।

इसके अतिरिक्त सर्वव्यापी अनुभव (ऐसा अनुभव जो सबको एक जैसा हो)जिसे अव्यक्तिक अनुभव भी कहते है जैसे-: गुरुवचन(गुरु अनुभव आधारित),विज्ञान के नियम आदि जिसमें विज्ञान के मतानुसार प्रयोग करके,सूत्र लगा कर जो अनुभव होता है,प्रायोगिक गणितीय मानदंड कहते है।  इस तरह अपने मानदंड स्थापित करने पर व्यवहारिक या सापेक्षिक सत्य प्राप्त होता है।विज्ञान के प्रयोग भी इन्ही सिद्धान्तों पर कार्य करते है।


ज्ञान मार्ग का साधक सत्य की खोज के लिए अद्वैत का कठोर मानदंड का उपयोग करता है ,जो यह कहता है कि जो भी अपरिवर्तित है ,वही सत्य है।इस मानदंड के अनुसार सभी अनुभव असत्य सिद्ध हो जाते है।

 ध्यान से देखने पर पता चलता है कि सारे अनुभव अस्थायी और परिवर्तनशील है।यहाँ कुछ भी ऐसा नही है ,जो चिरस्थायी हो।अनुभव भी वही हो सकता है जो बदल रहा हो और जो बदलता नहीं है उसका अनुभव करना असंभव है,एकमात्र वही शाश्वत ,चिरस्थायी सत्य है ।


आध्यात्मिक जगत में ज्ञानमार्ग के अनुसार सभी अनुभव परिवर्तन शील है,केवल प्रतीत होते है यहाँ एकमात्र सत्य है जो सभी अनुभवों का अनुभवकर्ता है,साक्षी , चैतन्य है।जिसका अनुभव नहीं किया जा सकता है, केवल हो कर ही जाना जा सकता है।


यह तो सही है कि व्यवहारिकता में अपना अपरोक्ष (सीधा)अनुभव ही अपना सत्य है ,इसलिए सत्य व्यक्तिनिष्ठ होता है।अतः अपना सत्य ढूंढना चाहिए।सत्य को पहचानना ही जीवन का उद्देश्य है ।सत्य चैतन्य प्रकाश है।सभी अनुभवों का सत्य साक्षी है।

                   ******** श्री गुरुवे: नम: ********
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