साधना -पथ

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आध्यात्मिक ज्ञान के लिए किसी न किसी आध्यात्म मार्ग का चयन करके आगे बढ़ना होता है ,उसके बाद ही मनुष्य का साधक रूप में पुनर्जन्म होता है।अध्यात्म का पथ स्वयं के लिए होता है।जब किसी में स्वयं को जानने की इच्छा होती है तभी वह साधना पथ पर अग्रसर होता है।  

                      अध्यात्म मार्ग संसार से विमुख,आत्मोन्मुखी होता है।स्वयम तक पहुँचने के लिए भिन्न-भिन्न पथ हैं जैसे-: भक्तिमार्ग, तंत्रमार्ग, योगमार्ग, ज्ञानमार्ग आदि।

मार्ग चाहे जितने हो परन्तु लक्ष्य सभी का एक ही है।चाहे हम किसी भी पथ पर हों पहुंचना सभी को एक ही केंद्र बिंदु पर है।मार्गों में भिन्नता है किंतु लक्ष्य अभिन्न है।स्वयं को जानना ही परम लक्ष्य है और यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। 

प्रत्येक मनुष्य अद्वितीय होता है ।उसकी अपनी रुचि और व्यक्तित्व के गुणों के आधार पर मार्ग स्वयं ही आकृष्ट कर लेता है अर्थात प्रत्येक मनुष्य जो अध्यात्म मार्ग पर प्रविष्ट होता है अपनी क्षमतानुसार, रुचि,व्यक्तिपरक गुणों के आधार पर अपना मार्ग तय कर लेता है।

साधक में अपने मार्गानुसार विशिष्ट गुणों का होना आवश्यक है जैसे-:  भक्तिमार्ग में इष्ट के प्रति समर्पण,हृदय में भाव रस की अधिकता आदि।भक्तिमार्ग के साधक का इष्ट के प्रति अपनी संपूर्ण भाव से समर्पित हो उठते है।मीरा ,सुर,तुलसी भक्ति मार्ग के साधकों के उदाहरण है।

ज्ञान मार्ग में भी साधकों के लिए कुछ विशेष गुण अपेक्षित है।इस मार्ग में जैसे कि नाम से स्पष्ट है ज्ञानमार्ग में ज्ञान के माध्यम से स्वयं का बोध होता  है इसलिए साधकों में ध्यान,बुद्धि,तर्कशक्ति आदि गुणों का होना अपेक्षित किया जाता है।

अधिकतर साधकों को अपना स्वयं का आत्म-मूल्यांकन कर लेना चाहिए कि वह कौन से मार्ग के लिए उपयुक्त है अथवा कौन सा मार्ग उन्हें अपने लक्ष्य तक सहजतापूर्वक पहुंचाने में सहायक हो सकता है।यह सबका अपना-अपना व्यक्तिगत मत है।

सभी साधक अद्वितीय है और उनका मार्ग भी उनके अद्वितीय होता है।जो मार्ग या पथ उन्हें सर्वाधिक संतुष्टि व शांति प्रदान करता हो।वही उस साधक का साधना-पथ है उनको उसी पथ में सफलता प्राप्त होगी। वही पथ साधक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त आध्यात्मिक पथ सिद्ध होगी।

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