गुरु कौन है?
नमस्कार,
बोध-गंगा में आपका स्वागत है।
जो मार्ग दिखाए उसे मार्गदर्शक कहते है।आध्यात्मिक भाषा में किसी भी आध्यात्म मार्ग दिखाने वाले को हम गुरु के नाम से जानते है।प्रश्न उठता है सच्चा गुरु कौन है? गुरु कैसे मिलते है?
सच्चा गुरु वो है जो साधक के गुणों को पहचान कर उसकी आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायता करता हो।गुरु वो प्रकाश पुंज है जिससे साधक के मार्ग का अंधियारा दूर होता है,लक्ष्य सुस्पष्ट दिखाई पड़ता है।बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं। गुरु स्व का बोध कराते है।
गुरु के मार्गदर्शन पर चलकर साधक अपनी प्रगति सुनिश्चित करता है,यही गुरूकृपा है जो कई जन्मों की साधना का फल होता है।गुरु ज्ञान का संकेत करते है और शिष्य अपने स्वयम के अनुभव की कसौटी पर ज्ञान सिद्ध करते है।
गुरु की महिमा अपार है।गुरु भवबन्धनों से मुक्त करते है,अज्ञान का नाश करते है। जो माया-मोह,अज्ञान के पाश से बंधे जीव को मुक्ति का मार्ग दिखाते है वो गुरु ही है।ऐसे गुरु को शत-शत नमन।
" गुरु गोविंद दोउ खड़े,
काके लागू पांव ।
बलिहारी गुरु आपने,
जो गोविंद दियो बताय ।। "
उस परम शक्ति(गोविंद) तक पहुँचने का मार्ग गुरु द्वारा ही बोध कराया जाता है।गुरु कृपा से ही मनुष्य आत्मज्ञान को उपलब्ध होता है।मनुष्य जीवन से मुक्ति इस मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य है,जो बिना गुरुकृपा के संभव नहीं है।
गुरु मिलते ही साधक का नया जीवन प्रारम्भ होता है,इसलिए आध्यात्मिक जीवन के लिए गुरु की खोज आवश्यक है।साधना-पथ में अग्रसर होने लिए सर्वप्रथम गुरु से शुरू कीजिए।
गुरु ऐसा हो जिसे आपके मार्ग का अच्छा ज्ञान हो,आडंबर रहित हो।शिष्य के लिए समय हो,शिष्य की प्रगति में सहायक हो।इसी तरह ज्ञान-मुमुक्षु को गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का विशेष गुण भी होना चाहिए।गुरु और गुरुज्ञान के प्रति समर्पण का भाव अन्धश्रद्धा का विषय नहीं होना चाहिए ।अपने अनुभव ,तर्कबुद्धि की सहायता के आधार पर प्रमाणित करना चाहिए। जीवित गुरु का होना आवश्यक है ।
मेरा स्वयं का अनुभव कहता है कि जिस दिन आप स्वयम को पूर्ण रूप से तैयार कर लें गुरु आपके समक्ष उपस्थित होता है।केवल पात्रता होनी चाहिए,गुरु का स्वभाव ही देना है।जिस दिन शिष्य तैयार होता है,गुरु सामने होता है। शिष्य होने की आवश्यकता है । साधक जीवन मे प्रवेश करने की तैयारी करें।गुरु प्रतिपल तैयार है।खोज जारी रखें।गुरुकृपा और गुरु अवश्य मिलेंगें ।
गुरु को कीजै बंदगी,कोटि-कोटि प्रणाम ।
कीट न जाने भृंग को,गुरु करले आप समान ।।
अपने समान करने का सामर्थ्य केवल और केवल गुरु में ही है , किसी और में नहीं है। ध्यान रखें गुरु कोई व्यक्ति विशेष नहीं है।गुरु परम पद है।गुरु ज्ञान का स्त्रोत और विस्तारक है।गुरु अज्ञान के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाला माध्यम है।गुरु वो दर्पण है जो जिससे हमें अपने सत्य स्वरूप के दर्शन होते है।
----------------- श्री गुरुवे: नम : ---------------
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