Posts

मुक्ति की आकांक्षा

Image
 नमस्कार,               बोध-गंगा में आपका स्वागत है।                                                  प्रत्येक मनुष्य अपार सम्भवनाओं से भरा होता है या इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि संपूर्ण अस्तित्व ही अपार सम्भवनाओं से भरा होता है। मनुष्य जीवन का वह महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है जब स्वयं से प्रश्न पूछता है कि मैं कौन हूँ,ये जीवन क्या है?सुख-दुख की भावनाओं से नियंत्रित ये मेरा जीवन कष्टपूर्ण क्यों है?सुख क्षणिक क्यों है?और दुःख घनघोर क्यों हैं? मेरे होने का अर्थ क्या है? मेरा होना ही क्यों आवश्यक है? इस तरह के प्रश्नों में बड़ी पीड़ा झलकती है।आखिर ऐसा क्यों या वैसा क्यों?                    वास्तव में संसार एक पिंजरें के समान है,जिसमें अनेक सुख-दुःख के दाने जीव रूपी पक्षी चुगता है,जब इन दानों से मन भर जाता है तब यह जीव विचार करता है ये पिंजरा खुलता क्यों नहीं?मुझे...

ज्ञानमार्ग क्या है?

 स्वयं को जानने की यात्रा में जिन मार्गो का  उल्लेख है उनमें से ज्ञानमार्ग सर्वोत्तम है। ज्ञानमार्ग में ज्ञानचक्षु के माध्यम से अपने आत्म स्वरूप के दर्शन होते है। ज्ञानमार्ग मार्गहीन मार्ग है,बहुत छोटा सा मार्ग होता है।इस मार्ग में कोई विशेष साधना नहीं है परंतु यह अनुशासित मार्ग है।ज्ञानमार्ग एक व्यवस्थित जीवन शैली भी है। यहां केवल एक ही साधना है ,वो है अपने अज्ञान का नाश। अज्ञान अर्थात अंधविश्वास, मान्यताओं, ऐसी कोई बात जो अविवेक पूर्ण हो उनका पूरी तरह से जड़ से नाश ज्ञान के द्वारा किया जाता है।जिस तरह प्रकाश होने पर अंधेरा लुप्त हो जाता हैं ,वैसे ही ज्ञान होने पर अज्ञान अपने आप ही दूर हो जाता है।  ज्ञानमार्ग में मुख्य रूप से तीन तरह का ज्ञान दिया जाता है।1.आत्मज्ञान-: मैं क्या हूँ, मेरा तत्व क्या है,मेरा स्वभाव क्या है। 2.जगत (माया)का ज्ञान-: जगत के अनुभव क्यों,कैसे और इनका यथार्थ क्या है? 3.ब्रम्ह(अस्तित्व)का ज्ञान-:  संपूर्णता क्या है? इससे मेरा क्या संबंध। ज्ञानमार्ग में सही और शुद्ध भाषा पर जोर दिया जाता है,ताकि बोलने ,सुनने में भाषा के अर्थ न बदल जाएं। शुद्ध भा...

सत्य

 सभी धर्मों में सत्य को प्रतिष्ठित किया गया है।सत्य को सर्वोपरि रखा गया है।सबने एक ओंकार ,सत्यनाम ,साक्षी आदि नामों की ओर ही इंगित किया है परंतु फिर भी लोग सत्य से बहुत अनभिज्ञ होते है।  सामान्य जीवन में भी सत्य के प्रति उत्सुकता होती है।आखिर सत्य क्या है यह जानने में चेष्टा लगी होती है।अपने माता-पिता,शिक्षकों ,पुस्तकों से जो मिलती है ,वह जानकारी या सूचना मात्र होती है। अपने मत में हमनें अपने माता-पिता,शिक्षकों से जो प्राप्त होता है उस पर अपना पूरा विश्वास होता है कि वह सत्य ही होगा ,किंतु यह विचारणीय है कि कौन से तथ्य को सत्य मान लेवें और किसे असत्य ।  सत्य-असत्य को तय करना कठिन होगा जब तक सत्य को परखने का मानदंड अपने पास न हों।सत्य दो प्रकार का हो सकता है एक व्यक्तिनिष्ठ और दूसरा सार्वभौमिक।व्यक्तिनिष्ठ सत्य स्वयम के अनुभवों पर आधारित होते है, दूसरा सार्वभौमिक सत्य जो सबके अनुभवों का सत्य होता है। सत्य के मानदंड में स्वानुभूति, तार्किकता,पुनरावृति, सर्वव्यापकता ,स्वप्रमाणिकता का गुण होना चाहिए । इसके अतिरिक्त सर्वव्यापी अनुभव (ऐसा अनुभव जो सबको एक जैसा हो)जिसे अव्यक्तिक...

ज्ञान - अज्ञान

नमस्कार,                        बोध-गंगा में आपका स्वागत है। ज्ञान और अज्ञान को जानने की यात्रा में हम यह भलीभांति जानते है कि ये दोनों परस्पर विरोधी शब्द है।जहाँ अज्ञान होता है, वहाँ ज्ञान नहीं हो सकता है और जहाँ अज्ञान का अभाव हो ,वहीं ज्ञान है। अज्ञान मान्यताओँ, अवधारणाओं, कल्पनाओं पर आधारित होता है।जिसमें अतार्किक तथ्य और स्वयं के अनुभवों का अभाव होता है। ऎसा कोई विचार जिसमें भ्रांति, कल्पना,मिथ्या,कुतर्क अथवा भ्रम का समावेश हो,जिसे अपनी बुद्धि या तर्क से परखा न गया हों और यदि उस विचार को मान लिया जाएं  कि सत्य है,तो वह संस्कार के रूप में चित्त में संचित होती है,वही अज्ञान है। जबकि ज्ञान स्वयम के अनुभवों का व्यवस्थिकरण या संयोजन है।जिसमें विभिन्न अनुभवों का आपस में संयोजन या व्यवस्थिकरण किया जाता है,जो ज्ञान है। यह एक चित्तवृत्ति है।यह भी चित्त में ही संचय होता है।इसका कोई आदि या अंत नही है।ज्ञान में तार्किक,स्वानुभूत तथ्य होते है जीवन क्या है? विभिन्न अनुभवों की श्रृंखला है।सभी अनुभव किसी न किसी ज्ञान को प्रदर्शित करत...

गुरु कौन है?

Image
नमस्कार,                       बोध-गंगा में आपका स्वागत है। जो मार्ग दिखाए उसे मार्गदर्शक कहते है।आध्यात्मिक भाषा में किसी भी आध्यात्म मार्ग दिखाने वाले को हम गुरु के नाम से जानते है।प्रश्न उठता है सच्चा गुरु कौन है? गुरु कैसे मिलते है?  सच्चा गुरु वो है जो साधक के गुणों को पहचान कर उसकी आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायता करता हो।गुरु वो प्रकाश पुंज है जिससे साधक के मार्ग का अंधियारा दूर होता है,लक्ष्य सुस्पष्ट दिखाई पड़ता है।बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं। गुरु स्व का बोध कराते है। गुरु के मार्गदर्शन पर चलकर साधक अपनी प्रगति सुनिश्चित करता है,यही गुरूकृपा है जो कई जन्मों  की साधना का फल होता है।गुरु ज्ञान का संकेत करते है और शिष्य अपने स्वयम के अनुभव की कसौटी पर ज्ञान सिद्ध करते है। गुरु की महिमा अपार है।गुरु भवबन्धनों से मुक्त करते है,अज्ञान का नाश करते है। जो माया-मोह,अज्ञान के पाश से बंधे जीव को मुक्ति का मार्ग दिखाते है वो गुरु ही है।ऐसे गुरु को शत-शत नमन।             ...

साधना -पथ

 नमस्कार,              बोध - गंगा में आपका स्वागत है। आध्यात्मिक ज्ञान के लिए किसी न किसी आध्यात्म मार्ग का चयन करके आगे बढ़ना होता है ,उसके बाद ही मनुष्य का साधक रूप में पुनर्जन्म होता है।अध्यात्म का पथ स्वयं के लिए होता है।जब किसी में स्वयं को जानने की इच्छा होती है तभी वह साधना पथ पर अग्रसर होता है।                         अध्यात्म मार्ग संसार से विमुख,आत्मोन्मुखी होता है।स्वयम तक पहुँचने के लिए भिन्न-भिन्न पथ हैं जैसे-: भक्तिमार्ग, तंत्रमार्ग, योगमार्ग, ज्ञानमार्ग आदि। मार्ग चाहे जितने हो परन्तु लक्ष्य सभी का एक ही है।चाहे हम किसी भी पथ पर हों पहुंचना सभी को एक ही केंद्र बिंदु पर है।मार्गों में भिन्नता है किंतु लक्ष्य अभिन्न है।स्वयं को जानना ही परम लक्ष्य है और यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है।  प्रत्येक मनुष्य अद्वितीय होता है ।उसकी अपनी रुचि और व्यक्तित्व के गुणों के आधार पर मार्ग स्वयं ही आकृष्ट कर लेता है अर्थात प्रत्येक मनुष्य जो अध्यात्म मार्ग पर प्रविष्ट होता है अ...