मुक्ति की आकांक्षा
नमस्कार, बोध-गंगा में आपका स्वागत है। प्रत्येक मनुष्य अपार सम्भवनाओं से भरा होता है या इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि संपूर्ण अस्तित्व ही अपार सम्भवनाओं से भरा होता है। मनुष्य जीवन का वह महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है जब स्वयं से प्रश्न पूछता है कि मैं कौन हूँ,ये जीवन क्या है?सुख-दुख की भावनाओं से नियंत्रित ये मेरा जीवन कष्टपूर्ण क्यों है?सुख क्षणिक क्यों है?और दुःख घनघोर क्यों हैं? मेरे होने का अर्थ क्या है? मेरा होना ही क्यों आवश्यक है? इस तरह के प्रश्नों में बड़ी पीड़ा झलकती है।आखिर ऐसा क्यों या वैसा क्यों? वास्तव में संसार एक पिंजरें के समान है,जिसमें अनेक सुख-दुःख के दाने जीव रूपी पक्षी चुगता है,जब इन दानों से मन भर जाता है तब यह जीव विचार करता है ये पिंजरा खुलता क्यों नहीं?मुझे...